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पांच मुक्तक

आंसूओं को कलम की स्याही बना लिया
दिल को ही अपने कागज़ बना लिया
जो भी लिखती है कलम, पढता है सिर्फ़ मन
आईनों को भी हमने ठेंगा दिखा दिया
*****

आंखों में तुम्हारी शरारतें हमेशा
न समझ आनेवाली इबारतें हमेशा
कितनी बार चाहा होंठ खुलें, मैं सुनूं
जीत ही जाता मौन, शब्द हार जाते हमेशा
*****

कितनी मस्तियां तुम्हारी आंखों में
कितनी तितलियां तुम्हारी आंखों में
जो भी देखे, बस देखता रह जाए
इतनी ज़िंदगियां तुम्हारी आंखों में
******
प्रेम के मुकदमों की कहीं, सुनवाई नहीं होती
प्रेमियों से बडी रुस्वाई, जग हंसाई नहीं होती
ज़िंदगियां पूरी हो जाती है प्रेम पाने और गंवाने में
इन कचहरियों के फ़ैसलों की, भरपाई नहीं होती
*******

हर सुबह वह आता सूरज की तरह
हर शाम चला जाता सूरज की तरह
उजाले हर लेता अंधेरो की तरह
हम सूने ही रह जाते वीरान बसेरों की तरह
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पाठकों के प्यार में


नवनीत पाण्डे- राजस्थानी और हिंदी में समान गति से लेखन । सच के आस-पास हिंदी कविता संग्रह (राजस्थान साहित्य अकादमी से सुमनेश जोशी पुरुस्कार से सम्मानित) और माटी जूण (राजस्थानी उपन्यास) के अलावा बाल साहित्य की कई पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं । राजस्थानी कहानी संग्रह प्रकाशनाधीन । "प्रतीक्षा" २ डी २, पटेल नगर, बीकानेर(राज)

poetofindia.blogspot.com

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